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गौरवमयी राष्ट्रीय भाषा | मातृभाषा हिंदी (स्वरचित कविता)

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गौरवमयी राष्ट्रीय भाषा  मैं  आज लहराया भारतीय राष्ट्रीय ध्वज , सभी भाषाएं रह गयी अचरज भारतीयों की मेहनत आज रंग लाई , मैं आज पूरे विश्व में हूँ छायी। मैं हूँ भारत की सबसे प्रचलित भाषा , मुझसे जुड़ी  है  हर दिल की अभिलाषा एक दिन में सफलता की सीढ़ी चढ़ जाउंगी तभी मैं गौरवमयी राष्ट्रभाषा कहलाऊंगी। हिम्मत न कभी मैं हारूँगी , सफलता की ओर बढ़ती चली जाउंगी जल्द ही वह समय आएगा , जब भारत पूरे विश्व में जाना जाएगा । जब रचा जाएगा विश्व का इतिहास , तब मेरा होगा उसमें  आवास भारत मेरी शान है , भारतीयों से ही मेरी पहचान है । भारतीयों ने है मुझे बनाया, उनमें है मैंने अपनापन पाया। विश्व मे रहेगा सदा मेरा अस्तित्व कभी न कम होगा मेरा महत्व। तुम पर किया मैंने भरोसा तुमने ही है मेरा सौंदर्य परोसा संस्कृत ही है मेरी माता वही है मेरी निर्माता। रमेश के ये भाव सजीव रखते है हिंदी की नींव हिंदी को न कर पायेगा कोई तोल क्योंकि यह भाषा ही है अनमोल तो गर्व से भाई तू हिंदी बोल। —रमेशचंद्र मातृभाषा हिंदी हिंदी ही गुरुम...

रमेश चंद्र (संक्षिप्त परिचय)

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रमेश चंद्र जी मॉडर्न दिल्ली पब्लिक स्कूल , फरीदाबाद में वरिष्ठ हिंदी अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं | आपका जन्म 15 अगस्त 1985 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ | आपने निरंतर संघर्ष करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की | आपने रोहतक विश्वविद्यालय से बी . एड . की उपाधि प्राप्त की और केंद्रीय हिंदी संस्थान से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान में डिप्लोमा भी प्राप्त किया | आपका शिक्षण के क्षेत्र में लगभग 9 वर्षों का अनुभव है | आपकी   हिंदी साहित्य के अध्ययन , अध्यापन और रचनात्मक लेखन में विशेष अभिरुचि है | आपने संपादन के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा दिखाई है | आपने ' अंकुर ', ' स्मारिका ' जैसी पत्रिकाओं का 6 वर्षों तक संपादन किया | आपके सक्रिय निरंतर रचनात्मक साहित्य और शिक्षा संबंधी विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं | आपको विभिन्न पुरस्कारों से भी पुरस्कृत किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं - ·        मैस्कॉट प्रेस द्वा रा रचनात्मक प्रतिभा शिक्ष...

हिंदी साहित्य और सिनेमा का अंतर्संबंध

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हिंदी सिनेमा ने सदैव समाज को नई दिशा प्रदान की है। भारत में ऐसी कितनी ही फिल्में हैं जो हिंदी साहित्य पर बनाई गई हैं और दर्शकों ने उन्हें काफ़ी सराहा भी है। हिंदी सिनेमा का गरिमापूर्ण आरंभ तब हुआ जब प्रेमचंद की एक नामचीन कृति के आधार पर सत्यजीत रे ने सन् 1977 में अपनी पहली हिंदी फ़िल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का सफलतापूर्वक निर्माण करके अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा डाला। भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास ‘चित्रलेखा’ से प्रेरित होकर भारत के महान निर्माता केदार शर्मा ने सन् 1941 में इसी शीर्षक से एक सदाबहार फ़िल्म की रचना की और फ़िल्म उद्योग में अपना नाम अमर कर लिया। इस फ़िल्म को भी जनता ने काफ़ी सराहा। हिंदी   सिनेमा   भीष्म साहनी के बँटवारे पर लिखे गए कालजयी उपन्यास ‘तमस’ पर इसी नाम से गोविंद निहलानी ने चार घंटे से ज़्यादा की फ़िल्म बनाई थी जो उपन्यास की तरह ही दर्शकों को अंदर तक झंझोड़ने में सफल रही। बी. आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित और कमलेश्वर द्वारा लिखित यह फ़िल्म ‘पति, पत्नी और वो’ इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है जो हिंदी सिनेमा में सफलतापूर्वक एक अमिट स्थान स्थापित कर चुकी है। ...